Tuesday, February 24, 2009

हर्फे-गलत (क़ुरआनी हकीक़तें)

सूरह अलबकर

अल्लाह कहता है - - -
" मगर जो लोग तौबा कर लें और इस्लाह कर लें तो ऐसे लोगों पर मैं मुतवज्जो हो जाता हूँ और मेरी तो बकसरत आदत हे तौबा कुबूल कर लेना और मेहरबानी करना."
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १६०)

अल्लाह की बकसरत आदत पर गौर करें. अल्लाह इंसानों की तरह ही अलामतों का आदी है. कुरान और हदीसों का गौर से मुतालिआ करें तो साफ साफ पाएँगे कि दोनों के मुसन्निफ़ एक हैं जो अल्लाह को कुदरत वाला नहीं बल्कि आदत वाला समझते हैं,
अल्ला मियां तौबा न करने वालों के हक में फरमाते हैं - - -

" अलबत्ता जो लोग ईमान न लाए और इसी हालत में मर गए तो इन पर लानत है, अल्लाह की, फरिश्तों की, और आदमियों की. उन पर अज़ाब हल्का न होने पाएगा."
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १६१ )

भला आदमियों की लानत कैसे हुई ? वही तो ईमान नहीं ला रहे. खैर अल्लाह मियां और रसूल मियां बोलते पहले हैं और सोंचते बाद में हैं. और इन के दल्लाल तो कभी सोचते ही नहीं.
* बहुत सी चाल घात की बातें इस के बाद की आयतों में अल्लाह ने बलाई हैं, अपनी नसीहतें और तम्बीहें भी मुस्लमान बच्चों को दी हैं. कुछ चीजें हराम करार दी हैं, बसूरत मजबूरी हलाल भी कर दी हैं. यह सब परहेज़, हराम, हलाल और मकरूह क़ब्ले इसलाम भी था जिस को भोले भाले मुस्लमान इसलाम की देन मानते हैं.
कहता है - - -

" अल्लाह ताला ने तुम पर हराम किया है सिर्फ़ मुरदार और खून को और खिंजीर के गोश्त को और ऐसे जानवर को जो गैर अल्लाह के नाम से ज़द किए गए हों. फिर भी जो शख्स बेताब हो जावे, बशर्ते ये कि न तालिबे लज्ज़त हो न तजाउज़ करने वाला हो, कुछ गुनाह नहीं होता. वाकई अल्लाह ताला हैं बड़े गफूर्रुर रहीम"
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १७३)

कुरान में कायदा कानून ज्यादा तर अधूरे और मुज़बज़ब हैं, इसी लिए मुस्लिम अवाम हमेशा आलिमों से फतवे माँगा करती है. मरहूम की वसीयत के मुताबिक कुल मॉल को हिस्से के पैमाइश या आने के हिसाब से बांटा गया है मगर रूपया कितने आने का है, साफ नहीं हो पाता, हिस्सों का कुला क्या है? वसीयत चार आदमी मिल कर बदल भी सकते हैं, फिर क्या रह जाती है मरने वाले की मर्ज़ी? कुरान यतीमों के हक का ढोल खूब पीटता है मगर यतीमों पर दोहरा ज़ुल्म देखिए कि अगर दादा की मौजूदगी में बाप की मौत हो जाय तो पोता अपनी विरासत से महरूम हो जाता है. क़स्सास और खून बहा के अजीबो गरीब कानून हैं. जान के बदले जान, मॉल के बदले मॉल, आँख के बदले आँख, हाथ के बदले हाथ, पैर के बदले पैर, ही नहीं, कुरानी कानून देखिए - - -

" ऐ ईमान वालो! तुम पर क़स्सास फ़र्ज़ किया जाता है मक़्तूलिन के बारे में, आज़ाद आदमी आज़ाद के एवाज़ और गुलाम, गुलाम के एवाज़ में और औरत औरत के एवाज़ में. हाँ, इस में जिसको फरीकैन की तरफ़ से कुछ मुआफी हो जाए तो माकूल तोर पर मतालबा करना और खूबी के तौर पर इसको पहुंचा देना यह तुम्हारे परवर दीगर की तरफ से तख्फ़ीफ़ तरह्हुम है जो इस बाद ताददी का मुरक्कब होगा तो बड़ा दर्द नाक अज़ाब होगा"

(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत१७९)

एक फिल्म आई थी पुकार जिसमे नूर जहां ने अनजाने में एक धोबी का तीर से खून कर दिया था. इस्लामी कानून के मुताबिक धोबन को बदले में नूर जहाँ के शौहर यानी जहाँगीर के खून करने का हक मिल गया था और बादशाह जहाँ गिर धोबन के तीर के सामने आँखें बंद करके खडा हो गया था. गौर करें यह कोई इंसाफ का मेराज नहीं था बल्कि एन ना इंसाफी थी. खता करे कोई और सज़ा पाए कोई. हम आप के गुलाम को कत्ल कर दें और आप मेरे गुलाम को, दोनों मुजरिम बचे रहे. वाह! अच्छा है मुजरिमों के लिए मुहम्मदी कानून.
सूरह की मंदर्जा ज़ेल आयतों में रोज़ों को फ़र्ज़ करते हुए बतलाया गया है कि कैसे कैसे किन किन हालत में इन की तलाफ़ी की जाए. यही बातें कुरानी हिकमत हैं जिसका राग ओलिमा बजाया करते हैं. मुसलमानों की यह दुन्या भाड़ में जा रही है जिसको मुसलमान समझ नहीं पा रहा है. यह दीन के ठेकेदार खैराती मदरसों से खैराती रिज़्क़ खा पी कर फारिग हुए हैं अब इनको मुफ्त इज्ज़त और शोहरत मिली है जिसको ये कभी ना जाने देंगे भले ही एक एक मुस्लमान ख़त्म हो जाए.
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १८४-१८७)
"तुम लोगों के वास्ते रोजे की शब अपनी बीवियों से मशगूल रहना हलाल कर दिया गया, क्यूँ कि वह तुम्हारे ओढ़ने बिछोने हैं और तुम उनके ओढ़ने बिछौने हो। अल्लाह को इस बात की ख़बर थी कि तुम खयानत के गुनाह में अपने आप को मुब्तिला कर रहे थे। खैर अल्लाह ने तुम पर इनायत फ़रमाई और तुम से गुनाह धोया - - -जिस ज़माने में तुम लोग एत्काफ़ वाले रहो मस्जिदों में ये खुदा वंदी जाब्ते हैं कि उन के नजदीक भी मत जाओ। इसी तरह अल्लाह ताला अपने एह्काम लोगों के वास्ते बयान फरमाया करते हैं इस उम्मीद पर की लोग परहेज़ रक्खें " (सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १८७)

आज के साइंस्तिफिक दौर में, यह हैं अल्लाह के एह्कम जिसकी पाबंदी मुल्ला क़ौम से करा रहे हैं. उसके बाद सरकार पर इल्जाम तराशी कि मुसलमानों के साथ भेद भाव। मुसलमान का असली दुश्मन इस्लाम है जो आलिम इस पर लादे हुए हैं।
" आप से लोग चांदों के हालत के बारे में तहकीक करते हैं, आप फरमा दीजिए कि वह एक आला ऐ शिनाख्त अवकात हैं लोगों के लिए और हज के लिए।
और इस में कोई फ़ज़िलत नहीं कि घरों में उस कि पुश्त की तरफ़ से आया करो। हाँ! लेकिन फ़ज़िलत ये है कि घरों में उन के दरवाजों से आओ।"

(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १८९)

मुहम्मद या उनके अल्लाह की मालूमात आमा और भौगोलिक ज्ञान मुलाहिज़ा हो, महीने के तीसों दिन निकलने वाले चाँद को अलग अलग तीस चाँद (चांदों) समझ रहे हैं। मुहम्मद तो खैर उम्मी थे मगर इन के फटीचर अल्लाह की पोल तो खुल ही जाती है जिस के पास मुब्लिग़ तीस अदद चाँद हर साइज़ के हैं जिसको वह तारीख के हिसाब से झलकाता है ।ओलीमा अल्लाह की ऐसी जिहालत को नाजायज़ हमल की तरह छुपाते हैं।
अल्लाह कहता है किसी के घर जाओ तो आगे के दरवाजे से, भला पिछवाडे से जाने की किसको ज़रूरत पड़ सकती है मुहम्मद साहब बिला वजेह की बात करते हैं।
"और तुम लड़ो अल्लाह की राह में उन लोगों के साथ जो तुम लोगों से लड़ने लगें, और हद से न निकलो, वाकई अल्लाह हद से निकलने वालों को पसंद नहीं करता और उनको क़त्ल करदो जहाँ उनको पाओ और उनको निकाल बाहर करदो, जहाँ से उन्हों ने निकलने पर तुम्हें मजबूर किया था. और शरारत क़त्ल से भी सख्त तर है - - - फिर अगर वह लोग बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह ताला बख्श देंगे.और मेहरबानी फरमाएंगे और उन ललोगों के साथ इस हद तक लड़ो कि फ्सदे अकीदत न रहे और दिन अल्लाह का हो जाए."

(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १९०-१९२ )

मुहम्मद को कुछ ताक़त मिली है, वह मुहतात रवि के साथ इन्तेकाम पर उतारू हो गए हैं "शरारत क़त्ल से सख्त तर है" अल्लाह नबी से छींकने पर नाक काट लो जैसा फरमान जारी करा रहा है.
जैसे को तैसा, अल्लाह कहता है - - -

"सो जो तुम पर ज्यादती करे तो तुम भी उस पर ज्यादती करो जैसा उस ने तुम पर की है"
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १९४ )

क्या ये इंसानी अजमतें हो सकती हैं? ये कोई धर्म हो सकता है? ओलिमा डींगें मारा करते हैं कि इसलाम सब्रो इस्तेक्लाल का पैगाम देता है और मुहम्मद अमन के पैकर हैं मगर मुहम्मद इब्ने मरियम के उल्टे ही हैं.
" और जब हज में जाया करो तो खर्च ज़रूर ले लिया करो क्यों की सब से बड़ी बात खर्च में बचे रहना. और ऐ अक्ल वालो! मुझ से डरते रहो. तुम को इस में जरा गुनाह नहीं की हज में मुआश की तलाश करो- - -"
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १९८)
अल्लाह कहता है अक़्ल वालो मुझ से डरते रहो, ये बात अजीब है कि अल्लाह अक़्ल वालों को खास कर क्यं डराता है? बे वक़ूफ़ तो वैसे भी अल्लाह, शैतान, भूत, जिन्, परेत, से डरते रहते हैं मगर अहले होश से अक्सर अल्लाह डर के भागता है क्यों कि ये मतलाशी होते है सदाक़त के.
"सूरह में हज के तौर तरीकों का एक तवील सिलसिला है, जिसको मुस्लमान निजाम हयात कहता है."(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १९६-२००)

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