जिस तरह से अक़्ल को ताक़ पर रख कर और अकीदत को सर में रख कर, तीन बार कलमए शहादत पढ़ लेने के बाद कोई भी शख्स मुसलमान हो सकता है, उसी तरह अक़ीदत को ताक़ पर रख कर और अक़्ल को सर में रख कर कोई भी मुसलमान "हर्फ़े-ग़लत" को सिर्फ़ दो बार पढ़ने के बाद मुसलमान से इंसान और सिर्फ़ इंसान बन सकता है. मोमिन मुतलक़
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bilkul sahi kaha hai aaapne.
ReplyDeletewww.hindusthangaurav.com