Saturday, February 7, 2009

मेरा दावा

जिस तरह से अक़्ल को ताक़ पर रख कर और अकीदत को सर में रख कर, तीन बार कलमए शहादत पढ़ लेने के बाद कोई भी शख्स मुसलमान हो सकता है, उसी तरह अक़ीदत को ताक़ पर रख कर और अक़्ल को सर में रख कर कोई भी मुसलमान "हर्फ़े-ग़लत" को सिर्फ़ दो बार पढ़ने के बाद मुसलमान से इंसान और सिर्फ़ इंसान बन सकता है. मोमिन मुतलक़

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