Wednesday, February 18, 2009

जवाबात (एतराजों के)

हम आभार व्यक्त करते है उन सभों का जिन्हों ईमानहु को सराहा. मैं उनका भी आभारी हूँ जिन्होंने इसे बुरा भला कह कर मुझे ऊर्जा बख्शी. खास कर एक वेब दुन्या का.

एतराजात के जवाब - - -इस्लामिक वेब दुन्या के कई एतराज़ आए हैं, नाम से ही लगता है की इनका भी ज़रीअया मआश इस्लाम ही है ओलिमा की तरह. इन्हों ने मेरी तहरीक की रूह को नहीं देखा, न समझा बल्कि खारजी पैकर पर ही नज़र डाली कहते हैं "लेखनी का स्तर हल्का है "किताब में लिखी बातों के बारे में या उसका जवाब देने के बजाए किताब की खारजी बातें, उसकी जिल्द साज़ी पर तन्क़ीद कर रहे हैं. इन की वेब देखी, ऐ आर रहमान पर इतर रहे हैं जो ख़ुद इनके अंदर घुस कर इनकी इसलाह कर रहा है, वंदे मातरम् कहके.

मैं ने तर्जुमा मशहूर मारूफ़ इस्लामी विद्वान् मौलाना शौकत अली थानवी का अपनी किताब "हर्फे-ग़लत" में लिया है जो उर्दू और हिदी दुन्या में लगभग ९०% पढ़ी जाती है, जिसको हजरत उल जुलूल कहते हैं.

फकीर मोहम्मद साहब कहते हैं की "तुम्हारे जैसे लोग इस्लाम की तौहीन हैं" जवाब में अर्ज़ है मियां की "आलम इन्सानिय्त्त पर इस्लाम एक दाग है." ईमानाहू के मजामीन पर ईमान लाइए .

लखनऊ से एक नौ जवान सलीम मियां की इत्तेला में लाना चाहता हूँ की मैं अपनी दो किताबें ब्लोग के तसव्वुत से मंज़र आम पर ला रहा हूँ. पहली हर्फे-ग़लत यानी कुरआन और दूसरी हदीसी हादसे यानी हदीसें. ल लखनऊ को मेरा सलाम कहिगा.

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