Friday, February 20, 2009

हर्फ़ ग़लत (Quraan)


सूरह - - - अल्बक्र (किस्त-२)
फतह मक्का के बाद अरब क़ौम अपनी इर्तेकाई उरूज को खो कर शिकस्त खुर्दगी पर गामज़न हो चुकी थी। जंगी लदान का इस्लामी हरबा उस पर इस क़दर पुर ज़ोर और इतने तवील अरसे तक रहा कि इसे दम लेने की फुर्सत न मिल सकी। इस्लामी ख़ुद साख्ता उरूज का ज़वाल उस पर इस कद्र ग़ालिब हुवा की इस का ताबनाक माज़ी कुफ़्र का मज़्मूम सिम्बल बन कर रह गया। योरोप के शाने बशाने बल्कि योरोप से दो क़दम आगे चलने वाली अरब क़ौम, योरोप के आगे ab घुटने टेके हुए है।
अल्लाह कहता है - - -

"अल्लाह काफिरों को चैलेंज करता है कि कुरान की एक आयत जैसी आयत कोई बना कर दिखलाए (ये मुहम्मदके अन्दर का शाएर बोलता है ) और लोग दर्जनों आयतें गढ़ गढ़ कर उन के सामने रख देते हैं मगर उनका चैलेंजकायम रहता है की क़यामत तक नहीं बना सकते।" (सूरह अलबकर २ पहला पारा , आयत २३)
मुहम्मद का ये दावा कुरआन में कई बार दोहराया जाता है।
उसके बाद कहता है - - -
" तो फिर बचते रहो दोज़ख से जिसका ईंधन आदमी और पत्थर हैं, तैयार हुई रक्खी है, काफिरों के लिए" (सूरहअलबकर २ पहला पारा , आयत २४ )
कभी इंसान और जिन्नात दोज़ख का ईधन हुवा करते हैं और अब बे जान, बे आमाल पत्थरों पर दोज़ख का अज़ाब नाज़िल होगा। अल्लाह को भूखी दोज़ख का पेट नहीं भरना बल्कि मुहम्मद को कुरआन का पेट भरना है अपनी बकवासों से और इस से मंसूब ओलिमा, आएमा, मुबल्लिग धंधे बाजों को अपनी अय्याराना तकरीरों और तहरीरों से. भोले भाले मुस्लिम अवाम को काश हकीक़त का एहसास हो और वक्त आवाज़ सुनाई दे.
*कुरआन में मुहम्मद ने कुछ मिसालें अपनी इल्मी या बेईल्मी सलाहियत का मुजाहेरा करते हुए गढ़ी हैं और तारीफ में अपनी पीठ भी ठोंकी है। हालां कि सब की सब बे जान और फुस फुसी हैं,चंद एक पेश हैं---
" हाँ! वाक़ई अल्लाह ताला तो नहीं शर्माते इस बात से कि बयान करें कोई मिसाल,ख्वाह वह मछ्छर की हो, ख्वाह इस से भी बढ़ी हुई हो. जो ईमान लाए हुए हैं ,ख्वाह कुछ भी हो यकीन कर लेंगे कि बे शक ये मिसालें बहुत मौके की हैं और रह गए जो लोग काफिर हो चुके हैं, कहते रहेंगे कि वह कौन सा मतलब होगा जिस का क़स्द किया होगा अल्लाह ने, इस हकीर मिसाल से गुमराह करते हैं. अल्लाह ताला इस मिसाल से बहुतों को और हिदायत देते हैं." (सूरह अलबकर २ पहला पारा , आयत 2६ )

हवा का बुत अल्लाह दोज़ख का पेट पत्थरों से भर रहा है, ख़ुद साख्ता उम्मी मुहम्मद कुरआन का पेट इन मोह्मिल आयातों से भर रहे हैं, मुस्लमान हवाई बुत अपने अल्लाह का पेट इन बकवासी आयातों की इबादत से भर रहा है, आलिमाने दीन और मुतल्लिक़ीन दीन बराए ज़रीआ मआश अपना पेट इस्लाम से भर रहे है, नव जवानों ने जेहादी राह पकड़ी है, कमजोरों को इस्लाम ने खैराती रिज़्क़ बख्शा है। ये है इस्लामी निजाम का अंजाम. मुफक्किर को इस में जिंदा रहने की कोई राह नहीं.

* " अल्लाह फरिश्तों के सामने ये एलान करता है कि हम ज़मीन पर अपना एक नाएब इंसान की शक्ल में बनाएंगे। फ़रिश्ते इस पर एहतेजाज करते हैं कि तू ज़मीन पर फ़सादियों को पैदा करेगा जब कि हम लोग तेरी बंदगी के लिए काफी हैं। मगर अल्लाह नहीं मानता और एक बा इल्म आदम को बना कर, बे इल्म फरिश्तों की जबान बंद कर देता है। अल्लाह के हुक्म से तमाम फ़रिश्ते आदम के सामने सजदे में गिर जाते हैं, सिवाए इब्लीस के। इब्लीस मरदूद, माजूल और मातूब होता है। आदम और हव्वा जन्नत में अल्लाह की कुछ हिदायत के बाद आजाद रहने लगते हैं। हस्बे आदत अल्लाह बनी इस्राईल को काएल करता है की हमारी किताब कुरआन भी तुम्हारी ही किताबों की तरह है. इस के बाद क़यामत और आखरत की बातें करता है." (सूरह अलबकर २ पहला पारा ,आयत 30-43)
आदम और हव्वा की तौरेती कहानी को कुछ रद्दो बदल करके मुहम्मद ने कुरआन में कई बार दोहराया है। मज़े की बात ये है कि हर बार बात कुछ बदल जाती है कहते हैं न कि " दरोग आमोज रा याद दाश्त नदारद."
*क्या गज़ब है कहते हो और लोगों को नेक काम करने को (नेक काम करने से मुराद रसूल अल्लाह सल्लाह अलैहिःवसल्लम पर ईमान लाना) और अपनी ख़बर नहीं रखते, हालां कि तुम तिलावत करते हो किताब की, तो क्या तुम इतना भी नहीं समझते."
(सूरह अलबकर २ पहला पारा , आयत ४४ )

मुहम्मद की महफ़िल में हर किस्म के लोग हुवा करते थे. मजबूर इतने की उनके थूके हुए को मुंह पर मल लिया करते थे, खुददार और बा असर ऐसे की मुहम्मद के तमाम चाल घात को जानते हुए भी मसलहतन साथ निभाते थे. ऐसे ही कोई साहब हैं जो लोगों को नेक कामों की तलकीन करते हैं. मुहम्मद उनकी बातें सुन कर अन्गुश्त बदंदां होते हैं और मज़कूरा आयत नाज़िल करते हैं. इस आयत की पैरवी आम मुसलमान से लेकर खास तालिबान तक अच्छी तरह लाशऊरी तौर पर कर रहे हैं.
*" आदम और हव्वा की मन गढ़ंत कहानी के बाद मुहम्मद का अल्लाह बनी इस्राईल के सुने सुनाए किस्से पेश करता है. अधूरी जानकारी के बाएस अल्लाह इन का अस्ल बयान नहीं कर पाता. मगर बे सिर ओ पैर की तवील गुतुगू कर के तूल कलामी ज़रूर करता रहता है. तौरेत और मूसा के तवस्सुत से इस्लाम की तबलीग भी करता है और इन के असर से नव मुस्लिम को बचाने की कोशिश भी करता है. मुहम्मद की अधकचरी मालूमात की असलाह अगर कोई यहूदी अपने तारीखी पसे मंज़र में कर भी देता है तो मुहम्मदी अल्लाह उसको झूठा क़रार दे देता है कि तुम ने असलियत बदल डाली है. हम ब हैसियत अल्लाह इस बात के गवाह हैं कि हमारी बातें सच हैं. यानी झूठे के आगे सच्चा रोए. ऐसे मौके पर यहूदी आपस में बातें करते हैं, हम क्यों इन से उलझते हैं? और अपनी जानकारी इन्हें देते हैं. यह ग़ालिब लोग हैं, इनसे पार पाना मुश्किल है. अल्लाह कुछ इस अंदाज़ में बातें करता है - - - " एहसान मानो की तुमको मूसा ने अल्लाह के हुक्म से मिस्रयों से आजाद कराया, याद करो की वीराने में तुम्हें खाने के लिए बटेरें इफ़रात कर दी थीं और याद करो कि तुम भटक कर गोशाले की तरफ़ चले गए थे.* (सूरह अलबकर२ पहला पारा , आयत 47-93 )

* देखिए मुहम्मदी अल्लाह अपने प्यारे नबी से किस मुंसिफाना फ़रमान का एलान करवाता है - - -" "आप कहदीजिए (यहूदियों से) कि आलम आखिरत अगर तुम्हारे लिए ही फायदे मंद है तो अल्लाह के पास बिला शिरकते गैरे, मौत की तमन्ना करो, अगर तुम सच्चे हो. और वह कभी भी इस की तमन्ना नहीं करेंगे." (सूरह अलबकर २ पहलापारा , आयत 94)
ख़ुद साख्ता रसूल की इस पेश काश को क्या कहा जाए ? कम से कम ये मर्दों की बात तो नहीं हो सकती. कोई क़ौम अपने मुखालिफ के बहकावे में आकर ख़ुद कुशी की तमन्ना कर सकती है क्या? यही बात यहूदी कह सकते हैं कि अगर सिर्फ़ मुसलमान बख्शे जाएंगे तो वह मौत की तमन्ना क्यूं नहीं करते? ऐसी बातों पर ही अहले मक्का मुहम्मद को मजनू कहते थे. ऐसे मुकालमात का खालिक, किर्दगार ऐ खलक को बना कर मुसलमान अज ख़ुद ज़माने के सामने दिमागी दीवालिया हो जाता है.
और सुनें अल्लाह की गुफ्तुगू अल्लाह वाले और अपने ईमान को ताज़ा करें- - -
" सुलेमान के अहद में बज़ात ख़ुद सुलेमान ने कोई कुफ़्र नहीं किया लेकिन शयातीन कुफ्र करते थे. और आदमियों को भी जादू की तालीम दिया करते और उस जादू की भी जो उस वक्त फरिश्तों पर नाजिल किया गया था. शहर बाबुल में जिस का नम हारुत और मारूत, लोग इन से सेहर सीखते, मियां बीवी के बीच झगडा कराने के लिए. साहिर लोग किसी को ज़रर नहीं पहुँचा सकते जब तक कि अल्लाह का हुक्म न हो"
(सूरह अलबकर २ पहला पारा , आयत102)
गौर करें की आप नमाजों में क्या पढ़ते हैं. यह किसी अल्लाह का कुरआन है? या फिर किसी उम्मी की खुराफात. ऐसी इबारतें क्या वास्ते इबादत हो सकती हैं. यह अल्ला नहीं, मुल्ला आप से जादू टोना जैसा कुफ्र करा रहे हैं. जागिए. इनका दामन छोडिए.
कुरआन की करीब सौ खास खास आयतों का मुतलेआ हम आप को गोश गुजार करा चुके हैं, आप ने कहीं कोई काम की बात पाई ? आलावा जिहालत के. जिन आयात को हम ने नहीं छुवा, वह हाथ लगाने लायक थीं भी नहीं, यानी दीवाने की झक.

1 comment:

  1. कुरान जितना उत्कृष्ट ग्रन्थ दुनिया में नहीं है। इसके हर दूसरे वाक्य में 'खुदा' है; हर पाँचवें वाक्य के बाद याद दिलाया गया है कि 'खुदा सब कुछ जानता है', 'खुदा देख रहा है'; 'खुदा के पास वापस जाना है'; 'खुदा तुमसे बहुत प्यार करता है'; ...इसके बाद बचा क्या? हर दसवें वाक्य के बाद इस्लाम को न मानने वालों के लिये 'इलाज' फरमाया गया है।

    ReplyDelete